पीठ का दर्द
Backbone
आज हम शरीर के उससे की बात करेंगे , जिसके दर्द से सभी लोग जिंदगी में कभी ना कभी दो चार हुए हैं और जैसे-जैसे उम्र बढ़ती हैं। तो उस हिस्से में तकलीफ हो जाती है ,मैं रीड की हड्डी यानी बैकबोन Backboneके बारे में आपसे बातें कर रहा हूं।
Backbone kya hai ?
दोस्तों असल में यह केवल एक हड्डी नहीं है। बल्कि बहुत सारी हड्डियों के टुकड़े में बनी होती हैं। जिन्हें हम डिस्क नाम से जानते हैं ,आपने अक्सर सुना होगा की एल 1 या एल 2 में दिक्कत है। बैकबोन यह नाम केवल हड्डी का नहीं है ,केवल इतना ही नहीं के बीच में स्पाइनल कॉर्ड spinalcordनाम से एक मोटी नस भी होती है। जो सफेद रंग की होती है और अपने चारों तरफ फ्लूइड यानी लिक्विड से घिरी होती है।
Back bone मानव रीढ़ की हड्डी, या मेरुदंड, एक जटिल संरचना है जो 33 कशेरुकाओं (vertebrae) से बनी होती है और इसे पाँच भागों में विभाजित किया गया है:
गर्दन का हिस्सा(सर्वाइकल स्पाइन*: सबसे ऊपर का हिस्सा, जिसमें 7 कशेरुकाएं (C1-C7) होती हैं। यह सिर का समर्थन करता है और इसके हिलने-डुलने की अनुमति देता है।
थोरैसिक स्पाइन इसमें 12 कशेरुकाएं (T1-T12) होती हैं। यह हिस्सा पसलियों से जुड़ता है और ऊपरी पीठ का समर्थन करता है।
कमर का हिस्सा लम्बर स्पाइन: इसमें 5 कशेरुकाएं (L1-L5) होती हैं। यह शरीर के वजन का अधिकांश भाग Back bone मानव रीढ़ की हड्डी, या मेरुदंड, एक जटिल संरचना है जो 33 कशेरुकाओं (vertebrae) से बनी होती है और इसे पाँच भागों में विभाजित किया गया है: गर्दन का हिस्सा(सर्वाइकल स्पाइन*: सबसे ऊपर का हिस्सा, जिसमें 7 कशेरुकाएं (C1-C7) होती हैं। यह सिर का समर्थन करता है और इसके हिलने-डुलने की अनुमति देता है। थोरैसिक स्पाइन इसमें 12 कशेरुकाएं (T1-T12) होती हैं। यह हिस्सा पसलियों से जुड़ता है और ऊपरी पीठ का समर्थन करता है। कमर का हिस्सा लम्बर स्पाइन: इसमें 5 कशेरुकाएं (L1-L5) होती हैं। यह शरीर के वजन का अधिकांश भाग सहन करता है और लचीलापन और गति की अनुमति देता है। सैक्रल स्पाइन इसमें 5 जुड़ी हुई कशेरुकाएं (S1-S5) होती हैं, जो त्रिकोणीय आकार की हड्डी बनाती हैं जिसे सैक्रम कहते हैं। यह रीढ़ को श्रोणि (pelvis) से जोड़ता है। कॉक्सीजियल स्पाइनइसे कॉक्सिक्स या टेलबोन कहते हैं, और इसमें 4 जुड़ी हुई कशेरुकाएं होती हैं। यह एक अवशेष के रूप में रहता है, जो पूंछ के अवशेष के रूप में होता है। करता है और लचीलापन और गति की अनुमति देता है।
सैक्रल स्पाइन इसमें 5 जुड़ी हुई कशेरुकाएं (S1-S5) होती हैं, जो त्रिकोणीय आकार की हड्डी बनाती हैं जिसे सैक्रम कहते हैं। यह रीढ़ को श्रोणि (pelvis) से जोड़ता है।
कॉक्सीजियल स्पाइनइसे कॉक्सिक्स या टेलबोन कहते हैं, और इसमें 4 जुड़ी हुई कशेरुकाएं होती हैं। यह एक अवशेष के रूप में रहता है, जो पूंछ के अवशेष के रूप में होता है।
Spinal cord kya hoti hai ?
लेकिन इसके काम कमाल के होते हैं। यह असल में एक पाइप जैसी लंबी होती है और हमारे शरीर के लगभग सभी अंगों के नर्व सिगनल यानी वह करंट जो हमें संवेदना देता है ,दिमाग तक पहुंचाते हैं। जिससे हमें संवेदना या संसेशन महसूस होती है। इस तरह यह हमारे शरीर को हमारे दिमाग से जोड़ती है। यदि हमारे डिश कोई भी हिस्सा इस कॉर्ड से छूने लगता है ,तो हमारे शरीर के उस हिस्से में दर्द और सुनापन आने लगता है।
Spinal cord injury
यदि बैकबोन की कोई डिश हिल गई और स्पाइनल कॉर्ड spinalcord डैमेज होने लगी तो इसके बहुत गंभीर परिणाम होते हैं। इसलिए यह और हमारी बैकबोन हमारे लिए बहुत जरूरी है कि स्पाइनल कॉर्ड सुरक्षित रहे।
Pain mangement
इसलिए दर्द के दौरान हमारे रीड की हड्डी केस स्टडी भी बहुत जरूरी होती है। जो हमारी गर्दन से नीचे कुलले के शुरुआत तक होती हैं। इस के छोटे-छोटे टुकड़े जिन्हें हम डिस्क कहते हैं ,हमें मोड़ने में चलने फिरने में हमारी सहायता करते हैं।
Diagnosis
अगर आप भी इस तरह से परेशान हैं तो यकीनन आपको एक्स-रे या सिटी स्कैन जैसे टेक्नो टूल का सहारा लेना होगा। इसके लिए हमें कुछ एक्सरसाइज या योगा करने से बहुत फायदा होता है। असल में हमारी डिश में प्रॉब्लम आने पर दवाई से ज्यादा एक्सरसाइज जरूरी होती है।
Calcium and vitamins D
वैसे डॉक्टर कैल्शियम ,विटामिन डी जैसे विटामिन देते हैं। जो हमें हड्डी में आई कमियों को दूर करने में सहायता करते हैं। हम प्राकृतिक तौर पर भी विटामिंस को प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए दूध ,सोयाबीन, दही ,फूल मखाने ,मास और अंडा जैसी डाइट खाने चाहिए। जिनमें विटामिन डी कैल्शियम और प्रोटीन भरपूर मात्रा में होता है। जो हमारी हड्डियों को मजबूत करता है। उनमें आई तकलीफों को कम करता है। इस तरह अपने आप को बचा सकते हैं।
Kya kare
लेकिन हम और भी कुछ कर सकते हैं कि हमें इस तरह की तकलीफ है इसका सबसे अच्छा उपाय है। हम अपने वजन को बढ़ने ना दें ,खाने में तली हुई चीजें ,फास्ट फूड ,शराब जैसी वस्तुओं से परहेज करें। यह भी जरूरी है कि हम नियमित व्यायाम करें ,योगा का सहारा लें ,सुबह शाम जरूर घूमे। इस तरह हमारा शरीर फ्लैक्सिबल रहता है और हमारी छोटी मोटी चोटों को सह सकता है।
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thanks for interest.